वैभव लक्ष्मी व्रत कथा

इस व्रत को करने से जीवन में चली आ रही धन संबंधी तंगी दूर होती है| धन और सुख-समृ्द्धि की प्राप्ति होती है| घर-परिवार में लक्ष्मी का स्थिर वास बनता है| व्‍यापार में मुनाफे की इच्‍छा रखने वाले लोगों के लिए ये व्रत विशेष रूप से फलदायी माना गया है| व्रत के दिन मां लक्ष्‍मी की पूजा के साथ श्रीयंत्र की पूजा का भी विधान है|



वैभव लक्ष्मी व्रत  कथा


वैभवलक्ष्मी व्रत की पूजा विधि - सुबह में स्नान करके स्वच्छ कपडे धारण करें और सारा दिन माता के विभिन्न स्वरूपों का स्मरण करते रहे | स्त्री हो या पुरुष संध्या के समय पूर्व दिशा में मुहं करके आसन पर बैठ जाए | मीठी चीजों से बना प्रसाद भी पास में रख ले | सामने पाटा रखकर उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछा ले| कपडे पर चावल का छोटा सा ढेर बना ले | उस ढेर पर पानी से भरा ताम्बे का कलश रखे तथा सोने, चांदी या फिर रुपया कटोरी में रखकर कलश के ऊपर रख दें |
माँ लक्ष्मी के सभी रूपों का चित्र और श्रीयन्त्र भी पूजा स्थान पर रख लें | अब सर्वप्रथम श्रीयंत्र और लक्ष्मी जी के विविध स्वरूपों का सच्चे दिल से दर्शन करे | उसके बाद लक्ष्मी स्तवन का पाठ करे | कटोरी में रखे गहने या रुपये को हल्दी, कुमकुम और चावल चढ़ाकर पूजा करे | लाल रंग के फुल को अर्पण करे एवं कथा कहे और तत्पश्चात आरती करे |


वैभव लक्ष्मी व्रत  कथा - किसी शहर में अनेक लोग रहते थे सभी अपने-अपने कामों में लगे रहते थेकिसी को किसी की परवाह नहीं थी भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए शहर में बुराइयां बढ़ गई थींशराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती वगैरह बहुत से गुनाह शहर में होते थे इनके बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे

ऐसे ही लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी स्वभाव वाली थी उनका पति भी विवेकी और सुशील थाशीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे
देखते ही देखते समय बदल गया शीला का पति बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा अब वह जल्द से जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब देखने लगा इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा फलस्वरूप वह रोडपति बन गयायानी रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी हालत हो गई थी शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा वगैरह बुरी आदतों में शीला का पति भी फंस गयादोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई इस प्रकार उसने अपना सब कुछ रेस-जुए में गंवा दिया
शीला को पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ, किन्तु वह भगवान पर भरोसा कर सबकुछ सहने लगी वह अपना अधिकांश समय प्रभु भक्ति में बिताने लगीअचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी शीला ने द्वार खोला तो देखा कि एक माँजी खड़ी थी उसके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था उसका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलक रहा थाउसको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई शीला के रोम-रोम में आनंद छा गयाशीला उस माँजी को आदर के साथ घर में ले आई. घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं थाअतः शीला ने सकुचाकर एक फटी हुई चद्दर पर उसको बिठाया
मांजी बोलीं- क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहां आती हूं  इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी फिर मांजी बोलीं- 'तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं अतः मैं तुम्हें देखने चली आईं
मांजी के अति प्रेमभरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया. उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह बिलख-बिलखकर रोने लगी. मांजी ने कहा- 'बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छाँव जैसे होते हैं. धैर्य रखो बेटी! मुझे तेरी सारी परेशानी बता
मांजी के व्यवहार से शीला को काफी संबल मिला और सुख की आस में उसने मांजी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई
कहानी सुनकर माँजी ने कहा- 'कर्म की गति न्यारी होती है. हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं. इसलिए तू चिंता मत कर अब तू कर्म भुगत चुकी है अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएँगे. तू तो माँ लक्ष्मीजी की भक्त है माँ लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं. इसलिए तू धैर्य रखकर माँ लक्ष्मीजी का व्रत कर. इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा
शीला के पूछने पर मांजी ने उसे व्रत की सारी विधि भी बताई. मांजी ने कहा- 'बेटी! मां लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है. उसे 'वरदलक्ष्मी व्रत' या 'वैभव लक्ष्मी व्रत' कहा जाता है. यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है. वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त करता है
शीला यह सुनकर आनंदित हो गई. शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था. वह विस्मित हो गई कि मांजी कहां गईं? शीला को तत्काल यह समझते देर न लगी कि मांजी और कोई नहीं साक्षात्‌ लक्ष्मीजी ही थीं
दूसरे दिन शुक्रवार था   सबेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला ने मांजी द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत कियाआखिरी में प्रसाद वितरण हुआ यह प्रसाद पहले पति को खिलाया प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया  उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहींशीला को बहुत आनंद हुआ उनके मन में 'वैभवलक्ष्मी व्रत' के लिए श्रद्धा बढ़ गई
शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक 'वैभवलक्ष्मी व्रत' किया इक्कीसवें शुक्रवार को माँजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि कर के सात स्त्रियों को 'वैभवलक्ष्मी व्रत' की सात पुस्तकें उपहार में दीं  फिर माताजी के 'धनलक्ष्मी स्वरूप' की छबि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगीं- 'हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका 'वैभवलक्ष्मी व्रत' करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है. हे मां! मेरी हर विपत्ति दूर करोहमारा सबका कल्याण करो जिसे संतान न हो, उसे संतान देना सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना कुंआरी लड़की को मनभावन पति देना जो आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्ति दूर करना सभी को सुखी करना   हे माँ! आपकी महिमा अपार है ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के 'धनलक्ष्मी स्वरूप' की छबि को प्रणाम किया
व्रत के प्रभाव से शीला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा उसने तुरंत शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए घर में धन की बाढ़ सी आ गई  घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई. 'वैभवलक्ष्मी व्रत' का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी विधिपूर्वक 'वैभवलक्ष्मी व्रत' करने लगीं 

 

  वैभव लक्ष्मी व्रत  कथा

 

वैभव लक्ष्मी व्रत उद्यापन विधि -   सात, ग्यारह या इक्कीस, जितने भी शुक्रवारों की मन्नत माँगी हो, उतने शुक्रवार ‍तक यह व्रत पूरी श्रद्धा तथा भावना के साथ करना चाहिएआखिरी शुक्रवार को प्रसाद के लिए खी‍र बनानी चाहिए जिस प्रकार हर शुक्रवार को हम पूजन करते हैं, वैसे ही करना चाहिए पूजन के बाद माँ के सामने एक श्रीफल फोड़ें फिर कम से कम सात‍ कुंआरी कन्याओं या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक लगाकर मां वैभवलक्ष्मी व्रत कथा की पुस्तक की एक-एक प्रति उपहार में देनी चाहिए और सबको खीर का प्रसाद देना चाहिए इसके बाद माँ लक्ष्मीजी को श्रद्धा सहित प्रणाम करना चाहिएफिर माताजी के 'धनलक्ष्मी स्वरूप' की छबि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करें- 'हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका 'वैभवलक्ष्मी व्रत' करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है. हे माँ! हमारी (जो मनोकामना हो वह बोले) मनोकामना पूर्ण करें हमारी हर विपत्ति दूर करो. हमारा सबका कल्याण करो. जिसे संतान न हो, उसे संतान देना, सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना, कुँआरी लड़की को मनभावन पति देना, जो आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्ति दूर करना, सभी को सुखी करना हे माँ! आपकी महिमा अपार है आपकी जय हो! ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के 'धनलक्ष्मी स्वरूप' की छवि को प्रणाम करें  

वैभवलक्ष्मी व्रत में सावधानी - 

  1. व्रत के दिन हो सके तो पुरे दिन का उपवास रखना चाहिए | अगर न हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन करके शुक्रवार करना चाहिए |
  2. शुक्रवार वैभवलक्ष्मी व्रत में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बेहद जरुरी होता है जैसे की अगर शुक्रवार के दिन आप प्रवास या यात्रा पर गए हो तो वह शुक्रवार छोड़कर उसके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिए |
  3. यह व्रत अपने ही घर पर करना चाहिए |
  4. अगर कोई स्त्री शुक्रवार व्रत के दिन रजस्वला या सूतकी हो तो वह शुक्रवार छोड़कर उसके बाद वाले शुक्रवार को व्रत करना चाहिए | 
 

 



बुधवार व्रत विधि (Budhvar Vrat Vidhi in Hindi) अग्नि पुराण में बताया गया हैं कि बुध-संबंधी व्रत विशाखा नक्षत्र युक्त बुधवार को आरंभ करना चाहिए। और लगातार सात बुधवार तक यह व्रत किया जाना चाहिए। बुधवार का व्रत शुरू करने से पहले भगवान गणेश के साथ नवग्रहों की भी पूजा करनी चाहिए। ध्यान दें कि बुधवार व्रत के दौरान भागवत महापुराण का पाठ अवश्य करना चाहिए। बुधवार व्रत को शुक्ल पक्ष आने वाले पहले बुधवार से शुरू करना शुभ माना जाता है। बुधवार व्रत करने से व्यक्ति का जीवन में सुख-शांति से और घर धन-धान्य से भरा रहता है। बुधवार को प्रात: सभी कार्यों से निवृत्त हो, स्नानादि कर पवित्र हो जाएं। भगवान बुध की पूजा करें। व्रत करने वाले जातक को हरे रंग की माला या वस्त्रों का अवश्य धारण करने चाहिए। भगवान बुध की प्रतिमा न होने पर भगवान शंकर की मूर्ति या भगवान गणेश की पूजा भी की जा सकती हैं। पूरे दिन फलाहार से ही व्रत करना चाहिए। शाम के समय संध्या आरती कर एक समय भोजन करना चाहिए। बुधवार व्रत में हरे रंग के वस्त्रों, फूलों और सब्जियों का दान जरूर देना चाहिए। बुधवार व्रत में एक समय दही, मूंग दाल का हलवा या हरी वस्तु से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए।

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बुधवार व्रत विधि (Budhvar Vrat Vidhi in Hindi) अग्नि पुराण में बताया गया हैं कि बुध-संबंधी व्रत विशाखा नक्षत्र युक्त बुधवार को आरंभ करना चाहिए। और लगातार सात बुधवार तक यह व्रत किया जाना चाहिए। बुधवार का व्रत शुरू करने से पहले भगवान गणेश के साथ नवग्रहों की भी पूजा करनी चाहिए। ध्यान दें कि बुधवार व्रत के दौरान भागवत महापुराण का पाठ अवश्य करना चाहिए। बुधवार व्रत को शुक्ल पक्ष आने वाले पहले बुधवार से शुरू करना शुभ माना जाता है। बुधवार व्रत करने से व्यक्ति का जीवन में सुख-शांति से और घर धन-धान्य से भरा रहता है। बुधवार को प्रात: सभी कार्यों से निवृत्त हो, स्नानादि कर पवित्र हो जाएं। भगवान बुध की पूजा करें। व्रत करने वाले जातक को हरे रंग की माला या वस्त्रों का अवश्य धारण करने चाहिए। भगवान बुध की प्रतिमा न होने पर भगवान शंकर की मूर्ति या भगवान गणेश की पूजा भी की जा सकती हैं। पूरे दिन फलाहार से ही व्रत करना चाहिए। शाम के समय संध्या आरती कर एक समय भोजन करना चाहिए। बुधवार व्रत में हरे रंग के वस्त्रों, फूलों और सब्जियों का दान जरूर देना चाहिए। बुधवार व्रत में एक समय दही, मूंग दाल का हलवा या हरी वस्तु से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए।

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विधि:
  • ग्रह शांति तथा सर्व-सुखो की इच्छा रखने वालो को बुधवार का व्रत करना चाहिए|
  • रात दिन में एक ही बार भोजन करे|
  • व्रत में हरी वस्तुओ का प्रयोग करना उत्तम है|
  • व्रत के अंत में शंकर जी की पूजा, धूप, बेल-पत्र आदि से करनी चाहिए|
  • कथा के बीच में नहीं उठना चाहिए|


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विधि:
  • ग्रह शांति तथा सर्व-सुखो की इच्छा रखने वालो को बुधवार का व्रत करना चाहिए|
  • रात दिन में एक ही बार भोजन करे|
  • व्रत में हरी वस्तुओ का प्रयोग करना उत्तम है|
  • व्रत के अंत में शंकर जी की पूजा, धूप, बेल-पत्र आदि से करनी चाहिए|
  • कथा के बीच में नहीं उठना चाहिए|


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