तुलसी विवाह व्रत कथा

तुलसी विवाह पूजा विधि - परिवार के सभी सदस्य और विवाह में शामिल होने वाले सभी अतिथि नहा-धोकर व अच्छे कपड़े पहनकर तैयार हो जाएं। जो लोग तुलसी विवाह में कन्याएदान कर रहे हैं उन्हें व्रत रखना जरूरी है। शुभ मुहूर्त के दौरान तुलसी के पौधे को आंगन में पटले पर रखें। आप चाहे तो छत या मंदिर स्थान पर भी तुलसी विवाह किया जा सकता है अब एक अन्य चौकी पर शालिग्राम रखें। साथ ही चौकी पर अष्ट दल कमल बनाएं। अब उसके ऊपर कलश स्थापित करें। इसके लिए कलश में जल भरकर उसके ऊपर स्वास्तिक बनाएं और आम के पांच पत्ते वृत्ताकार रखें।अब एक लाल कपड़े में नारियल लपेटकर आम के पत्तों के ऊपर रखें। तुलसी के गमले पर गेरू लगाएं।  साथ ही गमले के पास जमीन पर गेरू से रंगोली भी बनाएं। अब तुलसी के गमले को शालिग्राम की चौकी के दाईं ओर स्थापित करें। अब तुलसी के आगे घी का दीपक जलाएं।  इसके बाद गंगाजल में फूल डुबोकर "ऊं तुलसाय नम:" मंत्र का जाप करते हुए गंगाजल का छिड़काव तुलसी पर करें।  फिर गंगाजल का छिड़काव शालिग्राम पर करें। अब तुलसी को रोली और शालिग्राम को चंदन का टीका लगाएं।  तुलसी के गमले की मिट्टी में ही गन्ने  से मंडप बनाएं और उसके ऊपर सुहाग की प्रतीक लाल चुनरी ओढ़ाएं। इसके साथ ही गमले को साड़ी को लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाकर उनका श्रृंगार करें। अब शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर पीला वस्त्र पहनाएं। तुलसी और शालिग्राम की हल्दी करें।  इसके लिए दूध में हल्दी भिगोकर लगाएं। गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप लगाएं। पूजन करते हुए इस मौसम आने वाले फल जैसे बेर, आवंला, सेब आदि चढ़ाएं शालिग्राम को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा कराएं। घर के किसी पुरुष सदस्यो को ही शालिग्राम की चौकी हाथ में लेकर परिक्रमा करनी चाहिए। इसके बाद तुलसी को शालिग्राम के बाईं ओर स्थापित करें।  आरती उतारने के बाद विवाह संपन्न होने की घोषणा करें और वहां मौजूद सभी लोगों में प्रसाद वितरण करें। तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूड़ी का भोग लगाया जाता है। तुलसी विवाह के दौरान मंगल गीत भी गाएं।



तुलसी विवाह व्रत कथा


तुलसी विवाह व्रत कथा - पौराणिक काल में एक थी लड़की। नाम था वृंदा। राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था। वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी। जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।

एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं।जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गए।
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा में  से उठ गई और उनके चरण छू लिए। जैसे ही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में देवताओं  ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूछा – आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गए। सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्रार्थना करने लगीं तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई।
उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा- आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इसपत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा। तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।


तुलसी विवाह व्रत कथा

 

तुलसी विवाह व्रत में सावधानी

  1. प्लास्टर ऑफ पेरिस से तुलसी विवाह मंडप नहीं बनाना  चाहिए। 
  2. आप गोबर, मिट्टी से मंडप बनाकर उसपर हल्दी का लेप लगा सकते हैं। पूजन का सामान रखने के लिए प्लास्टिक के सामान का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  3. खीर को शुभ माना जाता है।  खीर को प्रसाद के रूप में बांटने से पहले तुलसी और शालिग्राम को भोग लगाना नहीं भूलना चाहिए।
  4. एकादशी के दिन चावल न खाने की मान्यता है, जबकि दूध में भिगोई हुई खीर भोग लगाने के बाद खाई जा सकती है।
  5.  इस दिन चावल खाने और बनाने से परहेज करना चाहिए।  तुलसी विवाह में प्रसाद या भोज बनाते समय लहसुन, प्याज का परहेज करना चाहिए।  

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