इंदिरा एकादशी व्रत कथा

आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहते हैं।, इस व्रत को सभी मनुष्यों को करना चाहिए। इस व्रत को करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो पितर यमलोक में यमराज के दंड के भागी होते हैं, नरक लोक का कष्ट भोगते हैं, वे इस व्रत के पुण्य से मोक्ष प्राप्त कर स्वर्ग लोक चले जाते हैं। इस दिन भगवान शालिग्राम की पूजा की जाती है व उनके निमित्त व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है और वैकुंठ को प्राप्त होता है व उसके पितरों को भी स्वर्ग में स्थान मिलता है।




 इंदिरा एकादशी व्रत  कथा



इंदिरा एकादशी व्रत पूजन विधि - इस दिन प्रात: काल में स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। इसके पश्चात भगवान श्रीहरि का ध्यान करके व्रत का संकल्प करें। इसके बाद पूजा स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को अक्षत्, रोली, चंदन, धूप, गंगाजल, मिष्ठान आदी अर्पित करें। फिर विष्णु सहस्रनाम और विष्णु सतनाम स्तोत्र का पाठ करें। इसके पश्चात कपूर या गाय के घी का दीपक जलाकर भगवान की आरती करें। फिर पितरों को नरक में मिलने वाले कष्टों से मुक्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करें और उनके किए गए गलत कार्यों के लिए क्षमा याचना करें। तत्पश्चात पितरों के नाम से श्राद्ध कर, ब्राह्मणों को कुछ दान दें। फिर अगले दिन पारण के साथ व्रत खोलें।



   इंदिरा एकादशी व्रत  कथा


इंदिरा एकादशी व्रत कथा - सतयुग के समय महिष्मति नाम की नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए रहता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और भगवान विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और उनका पूजन किया। उन्होंने देवर्षि नारद से उनके आने का कारण पूछा। तब नारद मुनि ने कहा कि- हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो। मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहां श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने संदेशा दिया वह मैं तुम्हें कहता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूं। इसलिए हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्ण इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। नारदजी की बात सुनकर राजा ने अपने बांधवों तथा दासों सहित व्रत किया, जिसके पुण्य प्रभाव से राजा के पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गए। राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गए। धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा फल क्या है? सो कृपा करके कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अ‍धोगति से मुक्ति देने वाली होती है। हे राजन! ध्यानपूर्वक इसकी कथा सुनो। इसके सुनने मात्र से ही वायपेय यज्ञ का फल मिलता है।

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