सकट चौथ व्रत कथा

सकट चौथ व्रत हर महीने में पड़ता है। लेकिन सबसे खास सकट चौथ पुर्णिमांत पंचांग के अनुसार माघ के महीने में पड़ती है। इसे संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की सलामती के लिए व्रत रखती हैं। सुबह विघ्न हर्ता की पूजा करती हैं और शाम कों चंद्रमा को अर्घ्य देकर  व्रत खोलती हैं। 

 

सकट चौथ व्रत कथा

 

सकट चौथ व्रत पूजा विधि - एक कलश में जल भर कर रखें। धूप-दीप अर्पित करें। नैवेद्य के रूप में तिल तथा गुड़ के बने हुए लड्डु, ईख, शकरकंद, अमरूद, गुड़ तथा घी अर्पित करें। यह नैवेद्य रात्रि भर बांस के बने हुए डलिया या टोकरी से ढककर रख दिया जाता है। इस ढके हुए नैवेद्य को संतान ही खोलती है तथा भाई बंधुओं में बांटता है। ऐसी मान्यता है कि इससे भाई-बंधुओं में आपसी प्रेम-भावना की वृद्धि होती है।

अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग प्रकार के तिल और गुड़ के लड्डु बनायें जाते हैं। तिल के लड्डु बनाने हेतु तिल को भूनकर, गुड़ की चाशनी में मिलाया जाता है, फिर तिलकूट का पहाड़ बनाया जाता है, कहीं-कहीं पर तिलकूट का बकरा भी बनाते हैं। तत्पश्चात् गणेश पूजा करके तिलकूट के बकरे की गर्दन घर का कोई बच्चा काट देता है।
गणेश पूजन के बाद चंद्रमा को कलश से अर्घ्य अर्पित करें। धूप-दीप दिखायें। चंद्र देव से अपने घर-परिवार की सुख और शांति के लिये प्रार्थना करें। इसके बाद एकाग्रचित होकर कथा सुनें। सभी उपस्थित जनों में प्रसाद बांट दें। सकट  चौथ व्रत हर महीने में पड़ता है। लेकिन सबसे खास सकट चौथ पुर्णिमांत पंचांग के अनुसार माघ के महीने में पड़ती है। इसे संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की सलामती के लिए व्रत रखती हैं। सुबह विघ्न हर्ता की पूजा करती हैं और शाम कों चंद्रमा को अर्घ्य देकर  व्रत खोलती हैं।


 सकट चौथ व्रत कथा



सकट चौथ व्रत कथा - पौराणिक कथाओं के अनुसार, सकट चौथ के दिन गणेश भगवान के जीवन पर आया सबसे बड़ा संकट टल गया था। इसीलिए इसका नाम सकट चौथ पड़ा। इसे पीछे ये कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना। गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी। स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें । इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी। तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।

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